जिसे प्रेम नही हो हरी नाम से
जिनकी आवाज़ में हो ना कोई असर
जिसे प्रेम नही हो हरी नाम से
मुखड़ा ये भोला भला नही चाहिए
खुश होकर सिया ने एक तोहफा दिया
अपने हाथो से फ़ौरन वही तोड़ कर
चीर कर अपना सीना ये बजरंग कहे
मुझको मादियो की माला नही चाहिए
जिसे प्रेम नही हो हरी नाम से
जिनकी आवाज़ में हो ना कोई असर
देवता निश्चर किए मिलकर दरिया मतन
चौदह रत्नो में एक रतन विष भी मिला
जिसे पीकर उमा नाथ लागे कहाँ
मुझे अमराट का प्याला नही चाहिए
जिसे प्रेम नही हो हरी नाम से
जिनकी आवाज़ में हो ना कोई असर
जिनके पग राज से नारी अहिल्या तरी
उनके पैरो का मैं हू पुजारी सदा
राम के रंग में रंग गये डूबे जी
राम के रंग में रंग गये भक्त
अब कोई रंग वाला नही चाहिए
जिनकी आवाज़ में हो ना कोई असर
जिसे प्रेम नही हो हरी नाम से
मुखड़ा ये भोला भला नही चाहिए

