धन्य हुई सांवेर की धरती

  • dhanya huyi sanwer ki dharti

उल्टे है हनुमान जहां चोला सिंदूरी धारा,
धन्य हुई है हुई है,
धन्य हुई साँवेर् की धरती जहाँ लगे दरबार तुम्हारा…..

त्रेता मे लाँगूर यही पाताल विजय कर आया,
इस कलयुग मे भी हम सब पर है इनका हि साया,
इनकी दया दृष्टि मे आया ये सावेर हमारा,
सबका रक्षक सबका सहारा, बन गया राम दुलारा,
धन्य हुई है हुई है,
धन्य हुई साँवेर् की धरती जहाँ लगे दरबार तुम्हारा…..

इनकी भक्ति के सच्चे अदभुत ये रंग रहेंगे,
कलयुग मिट जायेगा पर मेरे बजरंग रहेंगे,
सेवक बलशाली इन जैसा होगा अब ना दोबारा,
मुझको अपनी सेवा मेरा, मेरा जन्म सुधारा,
धन्य हुई है हुई है,
धन्य हुई साँवेर् की धरती जहाँ लगे दरबार तुम्हारा…..

रामायण इतिहास तुमने जग मे अमर कर डाला,
जय उल्टे हनुमान महाप्रभु, जय हो बजरंग बाला,
चंदा सूरज से ज्यादा तेरे नाम का है उजियारा,
दुनिया तरसे तेरे लिए, “संजय” तरसे तेरे लिए,
हमें होता दर्श तुम्हारा,
धन्य हुई है हुई है,
धन्य हुई साँवेर् की धरती जहाँ लगे दरबार तुम्हारा…..

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