|

यह बिनती रघुबीर गुसांई

  • yeh vinti raghuveer gosai

यह बिनती रघुबीर गुसांई,
और आस बिस्वास भरोसो,हरो जीव जडताई,

चहौं न कुमति सुगति संपति कछु,रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,
हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई,

कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,
तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं,

या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,
ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं,

मिलते-जुलते भजन...