ये कौन चित्रकार है

  • ye kaun chitrakaar hai

हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखों रंग भरी,चमक रही उमंग भरी,
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है,
ये कौन चित्रकार है,ये कौन चित्रकार ।

तपस्वियों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ,
ये सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियां,
ध्वजा से ये खड़े हुए है वृक्ष देवद्वार के,
गलीचे ये गुलाब के,बगीचे ये बहार के,
ये किस कवी की कल्पना का चमत्कार है,
ये कौन चित्रकार है…

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो,
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो,
चमकाओ आज लालिमा अपने ललाट की,
कण कण से झांकती तुम्हे छवि विराट की,
अपनी तो आँख एक है उसकी हजार है,
ये कौन चित्रकार है,ये कौन चित्रकार।

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