ठहरी नहीं ये उम्र भी ढलती चली गयी

  • thehri nhi ye umar bhi dhalti chali gai

ठहरी नहीं ये उम्र भी ढलती चली गयी,
आदत पुरानी लीक पे चलती चली गयी,

हम चाहते थे होवे हरी की उपासना,
दिन रात मगर वासना छलती चली गयी,

दुनिया में दिखा सब कुछ लेकिन मिला न कुछ,
बेबस जवानी हाथ भी मलती चली गयी,

सोचा था संभल जायेंगे सुधरेंगे मगर फिर,
गलती पे गलती बस होती चली गयी,

राजेश्वर श्री राम की जिनपे हुई कृपा,
केवल उन्ही की ज़िन्दगी फलती चली गयी,

मिलते-जुलते भजन...