श्री राम लखन ले व्याकुल मन

  • Shri Ram Lakhan Le Vyakul Man

श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए,
नहीं पाई सिया अकुलाए नयन भर लाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।

सूनापन इतना गहरा था, श्रीराम का जी घबराया,
सारे पिंजरे थे खुले हुए, एक पंछी भी नजर नहीं आया,
थे धूल-धूल कलियाँ और फल, थे पात-पात मुरझाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।

सीता के कुछ आभूषण पथ पर, इधर-उधर बिखरे थे,
अन्याय और दुखभरी सिया की, करूण कथा कहते थे,
शोभा सिंगार एक चन्द्रहार, देखा तो राम अकुलाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।

आँसू का सागर उमड़ पड़ा, सुध-बुध भूले रघुनंदन,
यह हार मेरी सीता का न हो, पहचानो सुमित्रा नन्दन,
तब चरण पकड़ सिसकी भर-भर, लक्ष्मण ने भेद बताये,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।

कैसे बतलाऊँ क्षमा करो, भइया ये हार अदेखा,
मैने जब भी देखा, भाभी के चरणों को ही देखा,
वो लाल बरन भाभी के चरण, मेरे तीर्थ धाम कहलाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।

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