श्री गणेश की कथा सुनाऊ सुनलो भक्तो ध्यान लगाए
श्री गणेश की कथा सुनाऊ
सुन लो भक्तो ध्यान लगायें
मस्तक में चंद्रमा विराजे
स्वर्ण मुकुट शोभा बढ़ायें॥
रत्न जड़ित माला है गले में
कर में परशु, पुष्प दिखायें
नर का तन और गजमुख धारी
एकदंत शशि माल कहाये
मूषक राज है जिनकी सवारी॥
बुद्धि के दाता कहलायें
शिव के सुत और गौरी के पुत्र हैं
जिनको सिर पूजे, सिर नवायें
कैसे जन्म हुआ था उनका
कैसे जन्म हुआ गणेश का
सारी कथा रहस्य बतलायें॥
पार्वती मां की दो सखियां
जया और विजय कहलायें
करने को स्नान चली हैं
जल के अंदर गई समायें
तीनों लगी जल क्रीड़ा करने॥
तभी जया बोली मुस्कायें
प्यारी सखियों मेरी सुन लो
सुन लो बात ध्यान लगायें
वस्त्र और तन भीगा
कोई पुरुष यदि यहां आ जाये
इस हालत में देखेगा तो॥
धर्म, पति-व्रत भंग हो जाये
पहरेदार का पहरा लगाओ
कोई यहां आने न पाये
बहुत से गण हैं मेरे पति के
तेरे पास तो एक भी न आये॥
जया की बात सुनकर गिरिजा
तन के मैल को रही मल छुड़ायें
मैल छुड़ा के पुतला बनाया
प्राण प्रवाहित दिया करायें
जैसे ही प्राण पुतल में आये
सुंदर बच्चा दिया दिखायें॥
माता को कर जोड़ के बोला
चरणों में दिया शीश नवायें
किस कारण से हमें बुलायें?
श्री गणेश की सुनकर बातें
माता ने दी छड़ी थमायें ॥
हाथ में छड़ी थमा कर बोली:
सुन लो बेटा, कोई पुरुष न आने पाये
जब तक मैं स्नान न कर लूं
कोई पुरुष न आने पाये
पहरेदारी करो तुम यहां की
श्री गणेश को रही बतायें
माता का आदेश सुने हैं॥