श्री लक्ष्मी अमृतवाणी
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता,
विष्णु प्रिय कमलेश्वरी, लक्ष्मी दया निधान,
तिमिर हरो अज्ञान का, ज्ञान का दो वरदान,
आठ सिद्धियां द्वार तेरे, खड़ी है माँ कर जोड़,
निज भक्तन की नाँव को, तट की ओर तू मोड़,
निर्धन हम लाचार बड़े, तू है धन का कोष,
सुख की वर्षा करके माँ, हर लो दुःख का दोष,
जीवन चंदा को मैया, ग्रहण लगा घनघोर,
डगमग डोले पग हमरे, हम मानव कमज़ोर।
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता
महासुखदाई नाम तेरा, कर कष्टों का अंत,
मरुस्थली जैसी ये काया, दे दो इसे बसंत,
दिव्य रूप नारायणी, पारस है तेरा धाम,
तेरे सुमिरन से होते, संतन के सिद्ध काज,
स्वर्ण सी तेरी कांति, भय का करती नाश,
तेरी करुणा से टूटे, हर जंजाल का पाश,
मैया शोक विनाशिनी, ऐसा करो उपकार,
जीवन नौका हो जाए, भवसिंधु से पार,
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
शेष की सैया बैठ के, सकल विश्व को देख,
तेरी दृष्टि में मैया, हर मस्तक की रेख,
सिंधु सुता भागेश्वरी, दीजो भाग्य जगाय,
तज के जग को हम तेरी, शरण गए हैं आय,
तू बैकुंठ निवासिनी, हम नरकों के जीव,
प्राणहीन ये देह कहे, कर दो हमें सजीव,
कमला वैभव लक्ष्मी, सुख सिद्धि तेरे पास,
सागर तट पे हम प्यासे, मैया बुझा दो प्यास।
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता
धन धान्य से घर हमरे, सदा रहे भरपूर,
हर्ष के फूल खिलाय के, कांटे कर दो दूर,
तेरी अलौकिक माया से, भागे दुःख संताप,
रोम रोम माँ करे तेरा, मंगलकारी जाप,
हर की है अर्धांगिनी, कृपा की दृष्टि कर,
अन्न धन संपत्ति से माँ भरा रहे ये घर,
सागर मंथन से प्रकटी, ज्योति अपरम्पार,
मन से चिंतन हम करे, सबकी चिंता हार।
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता
जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता