राम की जानकी

  • Ram Ki Janki

बिन किरणों के सूर्य अकेला,
चंदा बिना चकोरी के,
सिया बिना है राघव ऐसे,
जैसे धनुष बिना डोरी के।

देह की बात नहीं है, बात है प्राण की,
देह की बात नहीं है-०२
देह की बात नहीं है, बात है प्राण की,
राम की जान है, राम की जानकी-०२
देह की बात नहीं है, बात है प्राण की,
राम की जान है, राम की जानकी-०२

ये मेरी दादी ने मुझे दिया था और कहा था,
राज महल से वनवासों तक हाथ थाम के जीना मरना,
प्यार किसी से तुम करना तो सिया राम के जैसा करना।

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संकट में जनक दुलारी ने अपने प्रियतम को पुकार लिया,
रघुनन्दन ने सीता के लिए सौ योजन सागर पार किया,
वो जनकपुरी का टुटा धनुष, सिया राम के मन को जोड़ गया,
इसी प्रेम के लिए उठाया धनुष तो अम्बर डोल गया,
सियावर राम चंद्र की जय!

हो राम सिया का प्रेम उजागर,
एक है गंगा एक है सागर,
राम सिया का प्रेम उजागर,
एक है गंगा एक है सागर,
वाल्मीकि के वचन हैं कहते,
राम के प्राण सिया में रहते-०२

सिखाती प्रेम जगत तो कथा मेरे भगवान की,
राम की जान है, राम की जानकी-०२

गाती तुलसी की चौपाई,
जल है सिया कमल रघुराई,
इनके पद में चारो धाम,
रघुपति राजा राघव राम,
मंगल भवन अमंगल हारी,
रघुनन्दन और जनक दुलारी,
रहते हृदय में आठो याम,
रघुपति राजा राघव राम,
राम की कथा है सच में,
कथा सिया के मान की,
राम की जान है, राम की जानकी-०८


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