राम जी से राम राम कहियो
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
।। दोहा ।।
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।१।।
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा ।।२।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ।।३।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ।।४।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ।।५।।
शंकर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ।।६।।
बिद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ।।७।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ।।८।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।९।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ।।१०।।
लाय संजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।११।।
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरत सम भाई ।।१२।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
सहस बदन तुमरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।।१३।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।।१४।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ।।१५।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ।।१६।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।१७।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।१८।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ।।१९।।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।२०।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।२१।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डरना ।।२२।।
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ।।२३।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ।।२४।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।२५।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।२६।।
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ।।२७।।
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ।।२८।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ।।२९।।
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ।।३०।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ।।३१।।
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ।।३२।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ।।३३।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ।।३४।।
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।३५।।
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।३६।।
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।।३७।।
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ।।३८।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।३९।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ।।४०।।
।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर-भूप ।।
