रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने

  • Racha Hai Srishti Ko Jis Prabhu Ne

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
जो पेड़ हमने लगाया पहले-०२
उसी का फल हम अब पा रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं।

इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धारा में फिर सब समाये,
इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धारा में फिर सब समाये,
है सत्य नियम यही धरा का,-०२
एक आ रहे हैं एक जा रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं।

जिन्होंने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जिन्होंने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले हैं यहाँ पे-०२
वही फिर वापस बुला रहे,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं।

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बैठे हैं जो धान की बालियों में,
समायें मेहँदी की ललियों में ,
बैठे हैं जो धान की बालियों में,
समायें मेहँदी की ललियों में,
हैं डाल हर पत्ते में समाकर-02
फूल रंग-बिरंगे खिला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे हैं।


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