रातो को उठ उठ कर जिनके लिए रोते है

  • raat ko uth uth kar jinke liye rote hai

रातो को उठ उठ कर जिनके लिए रोते है,
वो अपने मकानों में आराम से सोते है,

कुछ लोग ज़माने में ऐसे भी तो होते है,
महफ़िल में तो हस्ते है तन्हाई में रोते है,

दीवानो की दुनिया का आलम ही निराला है,
हस्ते है तो हस्ते है रोते है तो रोते है,

किस बात का रोना है किस बात पे रोते है,
कश्ती के मुहबीद ही कश्ती को डुबोते है,

कुछ ऐसे दीवाने है सूरज को पकड़ ते है,
कुछ लोग उम्र सारी अँधेरा ही धोते है,

जब ठेस लगी दिल पर तो राज खुल हम पर,
वो बात नहीं करते नशकर से चुभोते है,

मेरे दर्द के टुकड़े है ये शेर नहीं सागर,
हम साँस के धागो में सपनो को प्रोटे है

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