पांचो इन्द्रि बस म्ह.करके

  • pancho indri bas meh karke

मन का मणियां सांस की डोर चुपचाप रटन की माला,
पांचों इन्द्री बस म्हं करके बणज्या रहने वाला,

एक जीभ इन्द्री प्यारी हो सै मिठा बोलण सीखो,
कान इन्द्री शब्द सुणन नै बुद्धि तैं तोलण सीखो,
नैन इन्द्री धर्म जगह पै घूमण और डोलण सीखो,
एक गुप्त इन्द्री पर नारी पै मतना खोलण सीखो,
इस मन पापी नै बस मैं करले और लगादे ताला,

मन मणिये की माला तै अपराध कटण की हो सै,
मन अन्दर घर मन्दिर जित जगह रटण की हो सै,
बिन दीपक प्रकाश बिजली बिना बटण की हो सै,
बैकुण्ठ धाम एक नगरी साधु सन्त डटण की हो सै,
तूं उनके चरण म्हं शीश राक्ख जहां दया की धर्मशाला,

एक धु्रव भगत जी बालक से कहैं भक्ति करगे भारी,
गुरु गोरखनाथ जती कहलाए शिष्य पूर्ण ब्रह्मचारी,
धन्ना भगत रविदास भगत नै पांचूं इन्द्री मारी,
मीरां बाई सदन कसाई भक्ति नै पार उतारी,
तीन लोक प्रवेश कबीर एक सबसे भगत निराला,

भगवां कपड़े भष्म रमाले ईकतारा सा ले कै,
बेरा ना न्यूं कित चाले जां जग का सहारा ले कै,
इन भगतां का नाम मेटण लागे काफर आरा ले कै,
भजन कर्या जिनै भगवान का सच्चा सहारा ले कै,
इस मेहर सिंह नै बी हंस बणां द्यो सै कागा म्हं काला,

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