नर तन फेर ना मिलेगो रे

  • nar tan pher naa milego re

नर तन फेर ना मिलेगो रे, बांधे क्यों गठड़िया प्राणी पाप की,

बड़े भाग मानुष तन पायो भटक भटक चौरासी,
अब के दाव चूक जाए बंदे फेर पड़े गल फांसी,
डंडा पीठ पे पड़ेगा ये , बांधे क्यों गठड़िया…

दिन ऊगे से दिन डूबे तक बेहद करें कमाई,
छोरा छोरी की लालच में महल दिये बनवाई,
इनमें कैसे तो रहेगो रे , बांधे क्यों गठड़िया…….

माया के मद में आकर के,रोज मचावे दंगा,
एक दिन मरघट बीच ले जाएंगे कुटुम्ब करें तोय नंगा,
वा दिन चौड़े में फुकेगो रे ,बांधे क्यों गठड़िया……

देहरी तक तेरी तिरिया रोवे पोरी तक तेरी मैया,
तेरह दिन तक याद रहेगी कहे कबीर समझैया,
नाता यही तक रहेगो रे, बांधे क्यों गठड़िया……..

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