मुखड़ा क्या देखे दर्पण में

  • Mukhda Kya Dekhe Darpan Mein

मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

कागज की इक नाव बनाई, छोड़ी गहरे जल में,
धर्मी कर्मी पार उतर गया, पापी डूबे जल में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

खांच खांच कर साफा बांधे, तेल लगावे जुल्फन में,
इन ताली पर घास उगेला, धेनु चरली वन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

आम की डाली कोयल राजी, सुआ राजी वन में,
घरवाली तो घर में राजी, संत राजी वन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०३

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मोटा मोटा कड़ा पहने, कान विदावे तन में,
इन काया री माटी होवेला, सउँसी बीच आंगन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, जोड़ राखी बर्तन में,
कहत कबीर सुनो भाई साधो, रहेगी मनरी मन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

रथ गाड़ी ऊँची कर ली, बाँध लिया धन धन में,
मृत्यु आयी तो खाली गया, क्या लाया जीवन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

बावरी बुढ़िया रोवत बोली, ले जा मोती चुन में,
कहत कबीर जो राम न भजे, डूबे जग भर में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०२

मंदिर मस्जिद बाँध लिए, मन डोले मद के वन में,
कवीर कहे सच्चा वही, जो रहे प्रेम भवन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, दया धर्म नहीं मन में-०३


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