मन रे कर सत्संग सुख भारी

  • man re kar satsang sukh bhari

मन रे कर सत्संग सुख भारी

नारद की काटी चौरासी ,कालू कीर की राय,
लादु अजमल तीर गया ,पुत्र नारायण लो लगाय,
सज्जन कसाई सुधारिया ,बकरी का उपदेश,
लादु पापी पार हुआ ,यह सत्संग का संदेश,

मन रे कर सत्संग सुख भारी,
ऐसा जनम फेर नही आवे ,समझो हिये विचारी,

गंगा यमुना पुष्कर गोमती, आशा सब मे धारी,
तीर्थ का पाप सत्संग में जड़ता ,सुणावे गुणाकारी,

सत्संग बिना समझ नही आवे ,झूठा बणे मणधारी,
खुद में कस्तूरी मृग भटकता, भटकत भटकत हारी,

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर देवा ,तीनो की हद न्यारी
करो आस पास सत्संग की, बण जाओ अधिकारी,

गोकुल स्वामी देवा ,आप मिल्या अवतारी,
लादूदास आस सत्संग की ,करज्यो भव से पारी,

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