मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया

  • maine manush janam tujhko hira diya

मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया,
जो तू वृथा गवाए तो मैं क्या करूँ…..

मूल वेदो का सब कुछ बता ही दिया,
अब समझ में ना आये तो मैं क्या करूँ,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

अन्न दूध आदि खाने को सब कुछ दिया,
मेवा मिस्ठान भी मैंने पैदा किया,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

फिर भी निर्दयी हो जीवो को सताने लगा,
मॉस मदिरा ही खाये तो मैं क्या करूँ,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

दीन दुखियो के दिल के दुखाने लगा,
रात दिन पाप में मन लगाने लगा,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

तूने जैसा किया वैसा पाने लगा,
अब तू आंसू बहाये तो मैं क्या करूँ,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

नाम हरी का तेरा पाप भी काट दे,
जो तू पाप करने से मन डाँट दे,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

मैं चाहता हूँ आजा तू हरी की शरण,
अब तू ही न आये तो मैं क्या करूँ,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

छोड़ कर चल कपट आजा हरी की शरण,
कट जाये सहज तेरा आवागमन,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

जो कोई ना मानेगा हरी के वचन,
यही चक्कर लगाए तो मैं क्या करूँ,
मैंने मानुष जनम तुझको हीरा दिया……

मिलते-जुलते भजन...