महालक्ष्मी व्रत कथा
सिंधु सुता विष्णु प्रिया
श्री हरि के वाम
हे महालक्ष्मी आप को
बारंबार प्रणाम
हमारा बारंबार प्रणाम
चार भुजाएं आपकी
कमल पे रही विराज
गल मुक्तन की माल है
सर से सोने का ताज
तिहारे सर सोने का ताज
भक्तों को माँ बांट रही
देखो धन और धान
वैभव करे प्रदान माँ
रखती भक्तों की शान हे माँ
शेष की शैया सज रही
श्री विष्णु के संग
उल्लू के वाहन आपका
रहता आपके संग
ओ मइया रहता आपके संग
लाल रंग परिधान है
तिलक लगा है भाल
कनन कुंडल हैं सजे
नैना बड़े विशाल
लाखों सूरज सा तेज
मइया आदि का रूप
दर्शन आपका दिव्य
आपका रूप अनूप है मइया
चार गजनन मात के
चलें हमेशा साथ
अंग संग अश्व भी
मात तुम्हारे दिन रात
धन और वैभव बांटती
भक्तों को दिन रैन
माँ तुम हर आह्वान से
आता दिल को चैन
धन लक्ष्मी गज लक्ष्मी
वैभव लक्ष्मी नाम है
तुम्हारे ही तो नाम
तुम्हारे ही तो धाम
मइया आपके तेज से
जगमग हो संसार
ब्रह्मा विष्णु महेश भी
करते नमन सौ बार
बल बुद्धि धन धान्य दे
करती माँ कल्याण
दीर्घायु यश मान दे
मइया तुम्हें प्रणाम हमारा
पान सुपारी नारियल
मेवा और मिठान
कंचन थाल सजाकर के
करते हम गुणगान
लक्ष्मी सम मइया नहीं
भर देती भंडार
तुम्हारा भजन माँ जो करे
पाता तुम्हारा प्यार ओ मइया
पाता तुम्हारा प्यार
भक्तों को देती सदा
मइया शुभ और लाभ
दुख सब भक्तों के हरे
हर सकल संताप ओ मइया
चंदन दर पे माँ खड़ा
झोली को फैलाए
चरण धूल से आपकी
माथे तिलक लगाए
ओ मइया माथे तिलक लगाए