कौन मेरी नैया पार उतारे

  • kaun meri naiya paar utaare

बिन तुम्हारे कौन उबारे
कौन नैया मेरी पार उतारे
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
भटक गई नाव
खो गया है किनारा
कैसे संभलूं कोई ना सहारा
तुम जो आए ना तारणहार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…

बंधन में अपने जकड़ लिया है
मोह माया ने पकड़ लिया है
स्वयं का बुना जाल है
जीवन हुआ बेहाल है
कौन काटे बंधन इसके
सिवा तुम्हारे भरतार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…

अधम जान मुझे ना ठुकराओ
ठाकुर मेरे मुझे हृदय लगाओ
सुध बुध मेरी अब है लौटी
जिन्दगी रह गई बहुत ही छोटी
होगा क्या पछताने से राजीव
सब गंवाया तूने बेकार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…

अब भी है वक्त सम्भल जा
प्रभु की राह में निकल जा
बड़े दयालु हैं बड़े कृपालु
तुझे भी कर देंगें निहाल
जा शरण में उनकी चला जा
भाव भक्ति का मन में धार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…

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