गणेश अमृतवाणी

  • Ganesh Amritwani

विघन विनाशक गणराये भये से मुक्त करे
इस्की दया से भक्ति की भाव से नाव तारे
पार्वती ललना का मन से भजन तू कर्ता जा
करुणा की इस मूरत से मन वंचित फल तू पास
जिसके घर में गणराये के नाम का दीप जले
उस घर के हर जीव की हर एक बंध कथा
जिन्कपे करुणा स्वयं करे गौरी सुत महाराज
पलक झपकते ही उनके सिद्ध हो जाते काज

जय जय श्री गणेश
जय गणपति गणेश

मिट्टी के हैं हम बने गणपति प्राण स्वरूप
वो है रचैया हम रचना वो सूरज हम धूप
सदा समर्पण भाव से जाए गणपति पास
जीवन गठारी का तुमको कस्त न देगा भारी
नर नारायण ऋषि मुनि जिस्का मन न करे
दीन ही के वो स्वामी घड़ी में पाप हरे
गुण गौरव और ज्ञान की गंगा गणपति प्रीति
इस्के साधक को जग में काल साके ना जीतो

जय जय श्री गणेश
जय गणपति गणेश

आदी सिद्धिया ही जिसी सेवा करे दिन बारिश
उसके चरण सरोज से जुड़े रहे नैन
मन मंदिर में तू बसा अंबा लाल गणेश
कस्त नास्ट हो जाएंगे मिटेंगे सकल कलेश
त्रिभुवन के इस नाथ का चित्त से चित्त करे
जनम जन्म की पीठ तेरी जाएगी हरी
सागर है प्रभु प्रेम का प्यासा बन कर देखो
अमृत ​​मे हो जाएंगे बुड्ढी और विवेक

जय जय श्री गणेश
जय गणपति गणेश

घाट घाट की जनता शिव नंदन भगवान
चरण शरण में जा तो सही वो तो है दया निधि
दीन का शोक विशाद को हरता गणपति जापी
एक दांत के अर्चन से डरते दुख संताप
कशाद भांगुर तू बुलबुला ज्यो सपनों की बातो
ऐसे तू झड़ जाएगा जैसा वृक्ष से पाटी
नयाशीलता दया धर्म गजानन से सीखी
शंकर सुत से मांगले सत् गुणो की भीख

जय जय श्री गणेश
जय गणपति गणेश

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