एक हरि को छोड़ किसी की चलती नहीं है मनमानी

  • ek hari ko chorh kisi ki chalti nahi hai manmani

एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी,
चलती नही है मनमानी……

लंकापति रावण योद्धा ने,
सीता जी का हरण किया,
इक लख पूत सवालख नाती,
खोकर कुल का नाश किया,
धान भरी वो सोने की लंका,
हो गई पल मे कूल्धानि,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी……

मथुरा के उस कंस राजा ने,
बहन देवकी को त्रास दिया,
सारे पुत्र मार दीये उसने,
तब प्रभु ने अवतार लिया,
मार गिराया उस पापी को,
था मथुरा मे बलशाली,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…..

भस्मासुर ने करी तपस्या,
शंकर से वरदान लिया,
शंकर जी ने खुश होकर उसे,
शक्ति का वरदान दिया,
भस्म चला करने शंकर को,
शंकर भागे हरीदानी,
एक हरी को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…….

उसे मारने श्री हरि ने,
सुंदरी का रुप लिया,
जेसा जेसा नाचे मोहन,
वेसा वेसा नाच किया,
अपने हाथ को सर पर रखकर,
भस्म हुआ वो अभिमानी,
एक हरी को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी……

सुनो सुनो ए दुनिया वालो,
पल भर मे मीट जाओगे,
गुरु चरणों मे जल्दी जाओ,
हरि चरणों को पाओगे,
भजनानद कहे हरी भजलो,
दो दिन की है ज़िन्दगानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नही है मनमानी…….

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