भवानी तेरे दर को छोड़कर किस दर को जाऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर, किस दर को जाऊँ मैं
अब सुनता मेरी कौन है, किसे सुनाऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जब से याद भुलाई तेरी, लाखों कष्ट उठाएं है
क्या जानूँ इस जीवन में, कितने पाप कमाए हैं
अब हूँ शर्मिंदा आपसे, क्या बतलाऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तूँ है अम्बे वरों का दाती, तुझसे सब वर पाते हैं
ऋषि, मुनि और योगी सारे, तेरे ही गुण गाते हैं
अब छींटा दे दो ज्ञान का, होश में आऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे पाप कर्म ही तुझसे, प्रीति न करने देते हैं
कभी जो चाहूँ तब मिलू आपसे, रोक मुझे ये लेते हैं
अब किस विधि दातिए, आपका दर्शन पाऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जो बीती सो बीती लेकिन, बाकी उमर सँभालूँ मैं
प्रेम पाश में बंधा भवानी, भेंट प्रेम की गा लूँ मैं
अब सुनता मेरी कौन है, किसे सुनाऊँ मैं
भवानी तेरे दर को छोड़कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,