बहुत नाज करते हैं रहिमत पे हम
बहुत नाज करते हैं, रहिमत पे हम।
सलामत रहे तेरा, नज़रे कर्म॥
जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है।
हर शै में जलवा तेरा हू-ब-हू है॥
जमाना दीवाना हो, चूमें कदम,
बहुत नाज करते हैं…
तेरी रहिमतों का नहीं है ठिकाना।
है दीदार तेरा दया का खज़ाना॥
सभी शहिनशाह तेरा भरते हैं दम,
बहुत नाज करते हैं…
बहुत शुकरीया है बड़ी मेहरबानी।
बसर हो रही है यह जिंदगानी॥
तुम्हारी रज़ा में ही राजी हैं हम
बहुत नाज करते हैं…
तेरी रहिमतों के कर्जदार हैं हम।
गुनाहों पै अपने शर्मसार हैं हम॥
‘मधुप’ खा रहा है, यही एक गम
बहुत नाज करते हैं…
