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अवधपूरी के बाला दी

  • avadhpuri ke baala di

जिनू राज सवेरे मिलना सी, एक रात दे विच वो फ़कीर भया
अवधपूरी के बाला दी दस कौन बदल तकदीर गया

वनवासी दा भेस बना के, राम लखन दो भाई,
अंग-संग है राज दुलारी, सीता जैसी माई
एह गल सुन के हर दिल रोया, अखिओं से बह नीर गया

सूरज कुल के सूरज जाके लाया वनों मे डेरा,
दूर होया प्रकाश अवध का, छाया घोर अँधेरा
यह गल सुन के दशरथ मोया, अखिओं से बह नीर गया

राम लखन और जनक दुलारी, जा के बना दे विच रहना
भूख प्यास और सर्दी गर्मी, सो सो दुखड़े सहना
एह गल सुन के हर दिल रोया, पथरान चो बह नीर गया

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