अबिनासी दुलहा कब मिलिहो भगतन के रछपाल

  • abinaasi dulha kab miliho bhagtan ke rakshpaal

अबिनासी दुलहा कब मिलिहो भगतन के रछपाल

जल उपजी जल ही सो नेहा, रटत पियास पियास ,
मैं ठाढ़ी बिरहन मग जोहूँ , प्रियतम तुमरी आस

छोड़े नेह गेह, लगि तुमसों , भयी चरण लवलीन ,
तालामेलि होत घट भीतर , जैसे जल बिन मीन

दिवस नभूख ,रैननहिं निदिया ,घरआँगन न सुहावे ,
सेजरिया बैरन भइ हमको , जाबत रेन बिहावे

हमतो तुमरी दासी सजना, तुम हमरे भरतार ,
दीनदयाल दया करि आवो, समरथ सिरजन हार

कह कबीर सुन जोगिनी, तो तन में मन हि मिलाय.
तुम्हरी प्रीति के कारने, हो बहुरि मिलिहंइ आय

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