आया शरण ठोकरें जग की खा के

  • aaya sharan me thokaren jag ki kha ke

आया शरण ठोकरें जग की खा के,
हटूंगा प्रभु तेरी दया दृष्टि पाके।

पहले मगन हो सुखी नींद सोया,
सब कुछ पाने का सपना संजोया।
मिला तो वहो जो लाया लिखा के,
आया शरण ठोकरें जग की खा के॥

मान यह काया का है बस छलावा,
रावण सा मानी भी बचने ना पाया।
रखूंगा कहाँ तक मैं खुद को बचा के,
आया शरण ठोकरें जग की खा के॥

कर्मो की लीला बड़ी है निराली,
हरिश्चंद्र मरघट की करे रखवाली।
समझ में यह आया सब कुछ लुटा के,
आया शरण ठोकरें जग की खा के॥

ना है चाह कोई, ना है कोई इच्छा,
अपनी दया की मुझे दे दो भिक्षा।
जिसे सबने छोड़ा उसे तू ही राखे,
आया शरण ठोकरें जग की खा के॥

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