दरश करा दे आज मैया मुझको अपने लाल का
शिवजी का गोकुल आगमन
तर्ज- थाली भरकर ल्याई रे
डमरू लेकर आये शंकर जशोदा रे आंगण
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का
बड़ी दूर से चलकर मैया द्वार तुम्हारे आया हूँ।
भिक्षा देदो दर्शन की यही आस लेकर आया हूँ।
जिनको देखने आये शंकर, झूल रहे वो पालना
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का
सावन के मही ने में , शिव भोले- शंकर आते है।
दूध दही और बेलपत्र से उनको खूब रिझाते है।
उन्ही के जैसे वैश बनाया, लागे बहुत डरावना
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का
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जोगी जैसा रूप है तेरा बाग़म्बर की खाल है।
भांग धतूरा में मस्त मछन्दर , लागे बड़ा कमाल है।
बोले शंकर यू मुस्काकर, समझो मेरी भावना
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का
मैया बौली अन्न धन लेलो लाल नहीं दिखलाऊंगी।
नज़र कहीं लग जाएगी तो झाड़ा कहां लगाउंगी
भूतनाथ सा वेश है तेरा, बनकर आया पाहुना
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का
आंकड़ा की रोटी खाऊ धतुरा रो साग
विजया की तरकारी छमकू नाम है भोलानाथ
झाड़ा जंतर देनों जाणु , ज्ञान है मुझे त्रिकाल का
दरश करा दे आज़ मैया मुझको अपने लाल का