जबसे देखी ये सूरत प्यारी
तर्ज – ओ फिरकी वाली ….
हो .. जबसे देखी , ये प्यारी सी मूरत
है बड़ी खूबसूरत , माँ मरूदेवा के लाल की ।
मेरे ऋषभ जिणन्द दयाल की ।।
हो ..मनोहारी , ये लागे बड़ी प्यारी
में जाँऊ बलिहारी , ये मूरत है कमाल की ।
मेरे ऋषभ जिणन्द दयाल की ।।
हो ..जबसे देखी …
हो.. सूरज की किरणें आकर के जिनके , मुख पे
करती उजियारा ।
चमक रहा दिव्य तेज ललाट पे , नैनो से बहे
अमिरस धारा ।
शीश मुकुट है -2
कानो में कुंडल गल मोतियन की माला
डायमंड वाली , ये अंगिया निराली , नजर जिसने
डाली , वो हो गया निहाल जी
मेरे ऋषभ जिणन्द दयाल की ।।
हो ..जबसे देखी …
देख तुम्हारा श्रंगार हो दादा , भक्तो का मन हर्षाये
जी करता है दर्शन करके , हम तुझमे ही खो जाये
दर पे तुम्हारे – 2 आकर दादा , फिर वापस न
जाये ।
दिलबर दिनेश , की यही है तमन्ना , तेरे चरणों मे
रहना , ये अर्जी है तेरे लाल की
दादा रखना मेरा भी ख्याल जी
हो ..जबसे देखी ..