जितना दिया मुझे मालिक ने,इतनी मेरी औकात नही थी
जितना दिया मुझे मालिक ने,इतनी मेरी औकात नही थी,
एहे करम है मेरे बाबा का,वरना मुझ में तो ऐसी कोई बात ना थी,
मेरी ना कोई औकात सी,बाबे दी किरपा हो गई॥
कल कुज वी नही सी पले,आज हर था बल्ले बल्ले॥
गल्लिया दी चुगदा खाक सी,रहमत दी वखरा हो गई
मेरी ना कोई औकात सी………
दर दर तो मिलिया ठोकरा,मंगिया सी कुज ना मिलदा॥
जोगी बिना ना जानिया,दुखड़ा किसे ने दिल दा ॥
किसमत दे जंजीरे खुले,ओह दिन कदे ना भूले, ॥
मादे बड़े हालत सी,रोशन एहे ज़िन्दगी हो गई
मेरी ना कोई औकात सी………
पुछिया किसे ना सारा,पल पल मैं अथरू करे ॥
खुद बाबा जी ने आन के,कुज कह गिया गली बाती ॥
ओह करमा वाली रात सी,खबरे ओह किदरे खो गई ॥
मेरी ना कोई औकात सी………
सचिया एहे गल्ला सारिया,चुठी कोई गल ना कीती ॥
युवराज शर्मा गोल्डी,दसदे ने अपनी बीती ॥
कोई दिन सी ख्सीया आडिया,आज घूमिये कारा गाड़िया ॥
किस्मत वी बड़ी चलाक सी,रोंने सी जेह्ड़े रो गई
मेरी ना कोई औकात सी………