आजु रस, बरसत कुंजन माहिं
आजु रस, बरसत कुंजन माहिं।
मंजु-निकुंजनि-मंजुलता लखि,
विधि विधिताहुँ लजाहिं।
झूला डर् यो कदंब डार पै,
पै झूलत दोउ नाहिं।
पिय कह प्यारी ते ‘तुम झूलहु,
हौँ तोहिं काहिं झुलाहिं’।
प्यारी कह पिय ते ‘तू झूलहु,
हौं झुलवहुँ तोहिं काहिं’।
नहिं कोउ झूलत नाहिं झुलावत,
बहु विधि सखि समुझाहिं।
तब ‘कृपालु’ कह तुम दोउ झूलहु,
हम दोउ झुलवत आहिं ।।