पता नहीं रब्ब केहडिआं रंगां च राज़ी
की की ने दुनिया दे मंजर ओ खाली हाथी गया सिकंदर,
जग नु जीतन वालियां नु पाई अंत हारनी बाजी,
ओह्दिया रंगा नु ॥। ऑहियो जाने,
पता नी रब केहडीया रंगा विच राजी ॥।
कियां दे कोल पूत कियां दे कोल ती वी नहीं,
कियां कोल महिल कियां कोल कुली वी नही ॥
कियां कोल मंजिल कियां दे कोल राह वी नही ॥।
कई वारी कंडिया ते आके ॥ दुभ जांदे ने मांजी,
ओह्दियाँ रंगा नु ॥।,ओहियो जाने पता नही रब…..
सोच वी सचावे नाले कम वी करवाए,
ओ रंक नु राजे दी थावे आप ही बिठावे,
ओह्दियाँ रंगा दे विच जो वी रंगिया जावे,
फिर उसनू ओह चारदी कला आप ही दिखावे,
ओह एक पल वी दूर नही ॥,अपने बंदियां दा काजी,
ओह्दियाँ रंगा नु ॥।,ओहियो जाने पता नही रब…..
कुझ नदिया पहाडा नु बंदादुनिया दसे जावे,
पलक झाप्क्दियाँ ही ओह सांइस सोचा दे विच पावे,
कई पताल कई आकाश ओह, अपने विच समावे,
उसदा कोई आकार नही ओह निरंकार कहावे,
हर कोई उसदा दर तो मंगे जिसने दुनियां साजी,
ओह्दियाँ रंगा नु ॥।,ओहियो जाने पता नही रब…..
