सब तुझसे है तू हीं मुझमें है
सृष्टि का मूल तू, जीवन की धारा तू,
कण कण में बसा, हर एक सहारा तू,
तेरी हीं छाया से, जग ये संवरा है,
हर रूप में तू हीं, सब तेरा नज़ारा है,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
मुझसे हीं तू, ना जाने कैसा खेल है,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
ये जग सारा, तेरा हीं रूप है,
मैं तुमसे जुदा, नहीं एक क्षण भी,
यही ज्ञान, यही स्वरुप है,
जब जाना की सबकुछ तुझसे हीं है,
मन बोला अब डर किससे भी है,
बुद्धि ने कहा, वो तू ही में है,
ह्रदय ने कहा, अब बस तू हीं रहो,
जो जान गया, वही भजने लगा,
जो भजने लगा, वो तू बन गया,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
ये जग सारा, तेरा हीं रूप है,
मैं तुमसे जुदा, नहीं एक क्षण भी,
यही ज्ञान, यही स्वरुप है।
ओर इस भजन से भी आनंदित हों : चिंतन में हो घनश्याम
मैं मिट जाये, तू रह जाये,
बस एक हीं स्वर, हर ओर छाये,
हवा तेरी, अग्नि तेरी,
जल तेरा, मन मेरा नहीं,
ये तन भी तेरा,
जब सबकुछ तेरा माना मैंने,
तो पाया तुझमें खुदको मैंने,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
ये जग सारा, तेरा हीं रूप है,
मैं तुमसे जुदा, नहीं एक क्षण भी,
यही ज्ञान, यही स्वरुप है।
ज्ञानी का मन, बन गया मंदिर,
हर धड़कन गाये, तेरा नाम निरंतर,
पूजा ना रही अब कोई कर्म,
बस प्रेम हीं है सच्चा धर्म,
भक्ति में ज्ञान, ज्ञान में प्रेम,
यही है जीवन का परम नेम,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
ये जग सारा, तेरा हीं रूप है,
मैं तुमसे जुदा, नहीं एक क्षण भी,
यही ज्ञान, यही स्वरुप है।
अब मैं नहीं, तू हीं अंत,
ज्ञान तू, और तू हीं संत,
चलता कहाँ, जब तू हीं साथी,
तेरे बिना, कोई नहीं पाती,
तेरी लीला, तेरी शक्ति तेरी सांसे हैं,
मैं भी तो हूँ, यही गीता की बातें हैं,
सब तुझसे है, तू हीं मुझमें है,
ये जग सारा, तेरा हीं रूप है,
मैं तुमसे जुदा, नहीं एक क्षण भी,
यही ज्ञान, यही स्वरुप है,
तू हीं आरम्भ, तू हीं अंतिम,
ज्ञान तू, और तू हीं संत।
