धन धन सिंगाजी सुरमा
धन धन सिंगाजी सुरमा
जिन्न चवर बुहारया गुरू खेत हो
कलांका सी बाँध्या झूलना
अपना साहेब जी से हेत हो
सत सुकरत दया धर्म का
जिन्न रोपया खंब हो
भजन सुमरन मे हठ जो करे
हो भाई दाणा मोटा ठग हो
भार पड़े धरणी थर हरे
हो रामा प्रायश्चित बढ़ियो अपार हो
सकल ही देव बुलाय के
म्हारो साहेब करतो विचार हो
बैकुंठ बिढिलो रोपिया
आसा आप ही श्री महाराज हो
जाओ रे संत म्रत्यु लोक म
आसा भक्ति करना का काज हो
झट बिड़ीलों कोई लइ नी सक्या
आसा सकल उभा कर जोड़ हो
हम कसा जावा म्हारा साहेबा
यहाँ दुनिया छे कर्म अघोर हो
