पंछी की तरह घूमता ही रहा हूं मैं

  • panchi ki tarah ghumta hee raha hun main

पंछी की तरह घूमता ही रहा है तू,
कभी धरती पर कभी अंबर में उड़ता ही रहा है तू,
पंछी की तरह……

जीवन का सफर कितना बेखबर,
एक पल की भी ना है जिसकी खबर,
ऐसे बेखबर जीवन को ढूंढता ही रहा है तू,
पंछी की तरह……

काया की कुटी में रहता है तू,
मोह माया में फिर क्यों बहता है तू,
कभी इस देह में कभी उस देह में रमता ही रहा है तू,
पंछी की तरह……

प्रभु की शरण में ध्यान लगा,
वासनाओं को तू श्मशान भगा,
कभी विषियो में कभी तृष्णा में फंसता ही रहा है तू,
पंछी की तरह……

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