जपा कर जपा कर है ओम तत्सत्
जपा कर जपा कर है ओम तत्सत्
महा मंतरा है ये जपा कर जपा कर
है ओम तत्सत् है ओम तत्सत्
जपा कर जपा कर है ओम तत्सत्
महा मंतरा है ये जपा कर जपा कर
है ओम तत्सत् है ओम तत्सत्
दुश्तो ने लोहे का खंबा रचा था
तो निर्दोष प्रहलाद कैसे बचा था
करी थी विनय एक स्वर से उसी की
हरी ओम तत्सत् हरी ओम तत्सत्
सभा में खड़ी द्रोपदी रो रही थी
वो रो रो आँसू से मुख धो रही थी
पुकारा था उसने यही नाम जबतक
हरी ओम तत्सत् हरी ओम तत्सत्
लगी आग लंका में हलचल मची थी
लिखा था यही नाम कुटिया में उसे दिन
कुटिया विभीषण की फिर क्यो बची थी
हरी ओम तत्सत् हरी ओम तत्सत्
कहो नाथ सबरी के घर कैसे आए
और आए तो फिर बेर झूठे क्यो खाए
जूबा पेर था हरदे में वही नाम
हरी ओम तत्सत् हरी ओम तत्सत्
